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कन्या चाहे कितनीही श्रेष्ठ हो, तो भी वह अवश्य अपने पिताको दुःखदायक होती है ! कहा है कि--पिताको कन्याके उत्पन्न होतेही " कन्या हुई " ऐसी भारी चिन्ता मनमें रहती है. क्रमशः अब वह किसको देना ? " ऐसी चिन्ता रहती है. लग्न करनेके अनन्तर " पति के घर सुखसे रहेगी या नहीं ? " यह चिन्ता उत्पन्न होती है, इसलिये कन्याका पिता होना बहुत ही कष्टदायक है, इसमें शक नहीं. इतनेमें कामदेव राजाकी महिमा जगत् में अतिशय प्रसिद्ध करनेके हेतु अपनी सम्पूर्ण ऋद्धिको साथ ले वसन्तऋतु वनके अन्दर उतरा. वह ऐसा लगता था मानो जिसका अहंकार सर्वत्र फल रहा है, ऐसे कामदेवराजाका तीनों लोकोंको जीतने से उत्पन्न हुआ यश मनोहर तीन गीतों गा रहा है. तीनों गीतों में प्रथम गीत हैं मलयपर्वत के ऊपर से आनेवाले पवनकी सनसनाहट, दूसरा भ्रमरोकी झंकार व तीसरा है कोकिलपक्षियोंका सुमधुर शब्द, उस समय क्रीडारससे अत्यन्त उत्सुक हुई वे दोनों राजकन्याएं मनका आकर्षण होने से हर्षित हो वनमें गई. कोई हाथी के बच्चे पर, तो कोई घोडे पर, कोई मिश्रजातिके घोडे पर, तो कोई पालखी अथवा रथ आदि में इस प्रकार भांति भांति के वाहन में बैठकर बहुत सखियां उनके साथ निकली. पालखी में सुखपूर्वक बैठी हुई सखियों के परिवार से शोभायमान दोनों राजकन्याएं ऐसी शोभा दे रहीं थीं कि मानो विमानमें आरूढ व देवियों के परि
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