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भौंहसे उसका मुख भयंकर दीखने लगा. पश्चात् उस सिंह समान बलिष्ट व कीर्तिमान राजाने कहा कि, "हे सुभटों ! शूरवीरताका अहंकार रखते हुए वास्तव में कायर और अकारण डरनेवाले तुमको धिक्कार है ! तोता, कुमार अथवा कोई अन्य देवता वा भवनपति वह क्या चीज़ है ? अरे दरिद्रियों! तुम अब मेरा पराक्रम देखो." इस प्रकारसे उच्चस्वरसे धिकार वचन कह कर उसने दश मुंह व बीस हाथ वाला रूप प्रकट किया. एक दाहिने हाथमें शत्रुके कवचको सहजमें काट डालने वाला खड्ग, और एक वामहाथमें ढाल, एकहाथमें मणिधर सर्प सदृश बाणोंका समूह और दूसरे हाथमें यमके बाहुदंड की भांति भय उत्पन्न करनेवाला धनुष, एक हाथमें मानो अपना उसका मूर्तिमन्त यश ही हो ऐसा गंभीरस्वरवाला शंख और दूसरे हाथमें शत्रुके यशरूपी नाग ( हाथी) को बंधनमें डालने. वाला नागपाश, एक हाथमें यमरूप हाथीके दंतसमान शत्रुनाशक भाला और दूसरे हाथमें भयंकर फरसी, एक हाथमें, पर्वतके समान विशाल मुद्गर और दूसरे हाथमें भयानक पत्रपाल, एक हाथमें जलती हुई कांतिवाला भिदिपाल और दूसरे हाथमें अतितीक्ष्ण शल्य, एक हाथमें महान भयंकर तोमर और दूसरे हाथमें शत्रुको शूल उत्पन्न करने वाला त्रिशूल, एक हाथमें प्रचंड लोहदंड और दूसरे हाथमें मानो अपनी मूर्तिमति शक्ति ही हो ? ऐसी शक्ति, एक हाथमें शत्रुका नाश