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रत्नको हरण करनेसे यह आज तक मेरा शत्रु था, वह अब चोर भी होगया. हाय ! ज्ञानियों में श्रेष्ठ, धीर, शूरवीर शुक! तेरे समान प्रियमित्रके बिना सुभाषण सुनाकर अब मेरे कानोंको कौन सुख देगा ? हे धीरशिरोमणि ! दुर्दशाके समय तेरे सिवाय अन्य कौन मेरी सहायता करेगा?" ..
क्षणमात्र इस प्रकार खेद करके कुमार पुनः विचार करने लगा कि- "विषभक्षण करनेके समान यह खेद करनेसे क्या शुभ परिणाम होवेगा ? नाश हुई वस्तुकी प्राप्ति योग्य उपाय करनेहीसे सम्भव है. चित्तकी स्थिरताहासे उपायकी योजना हो सकती है, अन्यथा नहीं. मंत्रआदि भी चित्तकी स्थिरता बिना कदापि सिद्ध नहीं होते. अतएव मैं अब यह निर्धारित करता हूं कि- " मेरे प्रियतातेके मिले बिना मैं वापस नहीं फिरूंगा." तदनुसार कुमार तोतेकी शोधमें भ्रमण करने लगा. चोर जिस दिशाकी ओर गया था उसी ओर वह भी कितनीही दूर तक चला गया; परन्तु कुछ भी पता नहीं लगा. ठीकही है, आकाशमार्गमें गये हुएका पता जमीन पर कैसे लगे? अस्तु, तथापि आशाके कारण कुमार शोध करनेमें विचलित नहीं हुआ. सत्पुरुषोंकी अपने आश्रितोंमें कितनी प्रीति होती है ? तोतेने देशाटनमें साथ रह अवसरोचित मधुरभाषणसे कुमारके सिर पर जो ऋण चढाया था, वह ऋण उसकी शोधमें अनेक क्लेश सहनकर कुमारने उतार दिया इस प्रकार भ्रमण करते हुए पूरा एक दिन व्यतीत होगया.