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(५९८) शरीरमें प्रवेश करने ही पर पीडा करता है, परन्तु दूसरा तो देखते ही पीडा उत्पन्न कर देता है. अन्य वस्तुसे धूल हलकी, धूलसे तृण हलका, तृणसे रूई हलकी, रूईसे पवन हलका, पवनसे याचक हलका, और याचकसे हलका याचकको ठगने वाला है. कहा हैकि हे माता ! किसीके पास मांगने जावे ऐसे पुत्रको तू मत जनना. तथा कोई मांगने आवे उसकी आशा भंग करनेवाले पुत्रको तो गर्भमें भी धारण मत कर. इसलिये हे उदार, जगदाधार रत्नसारकुमार ! यदि मेरी मांगनी वृथा न जाय तो मैं कुछ मांगू." रत्नसारने कहा “अरे राक्षसराज! मन, वचन, काया, धन, पराक्रम, उद्यम अथवा जविका भोग देनेसे भी तेरा कार्य सधे तो मैं अवश्य करूंगा." यह सुन राक्षसने आदर पूर्वक कहा- "हे भाग्यशाली श्रेष्ठीपुत्र ! यदि ऐसा ही है तो तू इस नगरीका राजा हो. हे कुमार ! तेरेमें सर्वोत्कृष्ट सद्गुण हैं, यह देख मैं तुझे हर्षपूर्वक यह समृद्ध राज्य देता हूं, उसे तू इच्छानुसार भोग. मैं तेरे वशमें हो गया हूं, अतएव सदैव सेवककी भांति तेरे पास रहूंगा, और दिव्यऋद्धि, दिव्यभोग, सेनाआदि अन्य जिस वस्तुकी आवश्यकता होगी वह दूंगा. मनमें शत्रुता रखनेवाले समस्तराजाओंको मैंने जड मूलसे नष्ट कर दिये हैं, अतएव अन्य अनि तो जलसे बुझती है, परन्तु तेरी प्रतापरूप नवीन अग्नि शत्रुओंकी स्त्रियोंके अश्रुजलसे वृद्धि पावे. हे कुमारराज ! मेरी