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(५६९) लोहकवच तथा कुबेरका पक्ष मिलनेसे तक्षकादिककी भांति कुमारको द्विगुण उत्साह हुआ और हंसिनीको तिलकमंजरीके हाथमें देकर, स्वयं तैयार हो विष्णु जैसे गरुड पर चढते हैं वैसे समरान्धकार अश्व पर चढा. तब चन्द्रचूडने शीघ्र सेवककी भांति कुमारको गाण्डीवको तुच्छ करनेवाला धनुष्य और बाणोंके तर्कश दिये. उस समय रत्नसारकुमार देदीप्यमान कालकी भांति प्रचण्ड भुजदण्डमें धारण किये हुए धनुष्यका भयंकर टंकार शब्द करता हुआ आगे बढा. पश्चात् दोनों योद्धाओंने धनुष्यकी टंकारसे दशों दिशाओंको बहरी कर डालें ऐसा बाणयुद्ध प्रारंभ किया. दोनों जनोंके हाथ इतने कुशल थे कि कोई उनका तर्कशमेंसे बाण निकालना, धनुष्यको जोडना और छोडना देख ही नहीं पाता था, केवल एक सरीखी जो बाणवृष्टि हो रही थी वह तोतेआदिके देखने में न आई.
ठीक ही है, जलसे पूर्ण नवीनमेघ वृष्टि करे तब वृष्टिकी धाराका पूर्वापर क्रम कैसे ज्ञात हो सकता है ? बाण फेंकनेमें स्वाभाविक हस्तचातुर्य धारण करनेवाले और कभीभी आकुलव्याकुल न होवें ऐसे उभयवीरोंके केवल बाणही परस्पर प्रहार करते थे परन्तु उनके शरीरमें एकभी बाणने स्पर्श नहीं किया, अत्यन्त क्रोधित हुए उन दोनों महायोद्धाओं बहुत समय तक सेल्ल, बावल्ल, तीरी, तोमर, तबल, अर्द्धचन्द्र, अर्द्धनाराच,नाराचआदि नानाप्रकारके तीक्ष्णबाणोंसे युद्ध होता रहा. परन्तु