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पुष्पके समान सुगन्धी वृष्टि होती थी. उसकी सुन्दर युवावस्था देदीप्यमान हो रही थी. और उसका लावण्य अमृतके समान लगता था. साक्षात् रंभाके समान उस स्त्रीने श्रीआदिनाथभगवानको वन्दना की और पश्चात् वह मयूरके ऊपर बैठकर ही नृत्य करने लगी. उसने एक निपुण नर्तकीके समान चित्ताकर्षक हस्तपल्लवको कंपा कर, अनेक प्रकारके अंगविक्षेपसे तथा मनका अभिप्राय व्यक्त करनेवाली अनेकचेष्टासे और अन्य भी नृत्यके विविधप्रकारसे मनोहर नृत्य किया. उस नृत्यको देख कर कुमार व तोतेको इतना चमत्कार प्राप्त हुआ कि वे मंत्रमुग्धसे होगये । वह मृगलोचनी स्त्री भी सुस्वरूपकुमारको देख कर उल्लाससे विलास करती हुई बहुत समय तक आश्चर्य चकित. सी हो रही. पश्चात् कुमारने उससे कहा " हे सुन्दर स्त्री ! जो तुझे खेद न होवे तो मैं कुछ पूछना चाहता हूं." उसने उत्तर दिया- '. पूछो, कोई हानि नहीं." तब कुमारने उसका सर्व वृत्तान्त पूछा. उस स्त्रीने वाक्चातुरीसे प्रारम्भसे अन्त तक अपना मनोवेधक वृत्तान्त कह सुनाया. यथाः
"सुवर्णकी शोभासे अलौकिकसौन्दर्यको धारण करनेवाली कनकपुरीनगरीमें, अपने कुलको देदीप्यमान करनेवाला कनकध्वज ( स्वर्णपताका ) के समान कनकध्वज नामक राजा था. उसने अपनी प्रसन्नदृष्टिसे तृणको भी अमृत समान कर दिया. ऐसा न होता तो उसके शत्रु दांतमें तृण पकड उसका