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भांति इस प्रकार नानाविध विलाप करनेवाले रत्नसारकुमारको पोपटने इस रीति से यथार्थ बात कही कि - " हे रत्तसार ! जिसके लिये तू शोक करता है वह वास्तव में तापसकुमार नहीं, परन्तु किसी मनुष्यकी निजशक्तिसे रूपान्तर में परिवर्तित की हुई यह कोई वस्तु है, ऐसा मैं सोचता हूं. उसके भिन्न २ मनोविकारसे, मनोहर वाणीसे, कटाक्ष, आकर्षकदृष्टि से और ऐसे ही अन्यलक्षणोंसे मैं तो निश्चय अनुमान करता हूं कि, वह कोई कन्या है. ऐसा न होता तो तेरे प्रश्नसे उसके नेत्र अश्रुओं के क्यों भर गये थे ? यह तो स्त्रीजातिका लक्षण है. उत्तमपुरुष में ऐसे लक्षण होना संभव ही नहीं. वह घनघोर पवन नहीं था, बल्कि कोई दिव्यस्वरूप था. ऐसा न होता तो उस पवनने अकेले तापसकुमार ही को हरणकर अपनेको क्यों छोड दिया ?, मैं तो निश्चयपूर्वक कहता हूं कि वह कोई विचारी भली कन्या है और उस पर कोई दुष्टदेवता, पिशाच आदि उपद्रव करते हैं । दुष्टदैव के सन्मुख किसका वश चलता है ? जब वह कन्या दुष्टपिशाचके हाथमें से छूटेगी, तब निश्चयसे तुझे ही बरेगी । कारण कि जिसने प्रत्यक्ष कल्पवृक्षको देख लिया वह अन्य वृक्ष पर प्रीति कैसे रख सकता है? जैसे सूर्यका उदय होते ही रात्रिरूप पिशाचिका के हाथमेंसे कमलिनी छूटती है, वैसे ही वह कन्या भी तेरे शुभकर्मका उदय होने पर उस दुष्टपिशाच के हाथमें से छूटेगी, ऐसा मैं निश्चय समझता हूं, पश्चात् सौभाग्य