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तापसकुमारका ऐसा मनोहर भाषण भली प्रकार सुनकर अकेला रत्नसारकुमार ही नहीं बल्कि अश्व भी उत्सुक हुआ. जिससे कुमारका मन जैसे वहां रहा वैसे वह अश्व भी वहां स्थिर खड़ा रहा. उत्तम अश्वों का बर्ताव सवारकी इच्छानुकूल ही होता है.. रत्नसार, तापसकुमारके सौंदर्यसे तथा वाक्पटुता से मोहित होने के कारण तथा उत्तर देने योग्य बात न होने से कुछ भी प्रत्युत्तर न देसका इतने ही में वह चतुरतोता वाचाल - मनुष्य की भांति उच्चस्वर से बोलने लगा. " हे तापसकुमार ! कुमारका कुलआदि पूछनेका क्या प्रयोजन है ? अभी तूने यहां कोई विवाह तो रचा ही नहीं. उचितआचरणका आचरण करनेमें तू चतुर है, तो भी तुझे उनका वर्णन कहता हूं. सर्वव्रतधारियों को आगन्तुक अतिथि सर्व प्रकार पूजने योग्य है. लौकिकशास्त्रकारोंने कहा है कि चारों वर्णोंका गुरू ब्राह्मण है, और ब्राम्हणका गुरू अग्नि है, स्त्रियोंका पति ही एक गुरू है, और सर्वलोगों का गुरु घर आया हुआ अतिथि है. इसलिये हे तापसकुमार ! जो तेरा चित्त इस कुमार पर हो तो इसकी यथारीति मेहमानी कर. अन्य सर्वविचारोंको अलग कर दे. " तोते की इस चतुरयुक्तिसे प्रसन्न हो तापसकुमारने रत्नहार सदृश अपनी कमलमाला झट उसके ( तोतेके) गलेमें पहिराई और रत्नसारसे कहा कि, " हे श्रेष्ठकुमार ! तू ही संसार में प्रशंसा करनेके योग्य है,