________________
कारण कि तेरा तोता भी वचनचातुरीमें बडाही निपुण है. तेरा सौभाग्य सब मनुष्योंसे श्रेष्ठ है. अतएव हे कुमार ! अब अश्व परसे उतर, मेरा भाव ध्यानमें लेकर मेरा अतिथिसत्कार स्वीकार कर, और हमको कृतार्थ कर. विकसितकमलोंसे सुशोभित
और निर्मल जल युक्त यह छोटासा तालाब है, यह समस्त सुन्दर बनका समुदाय है और हम तेरे सेवक हैं, मेरे समान तापससे तेरी क्या मेहमानी हो सकती है ? नग्नक्षपणकके मठमें राजाकी आसना वासना कैसे हो? तथापि मैं अपनी शक्तिके अनुसार कुछ भक्ति दिखाता हूं. क्या समय पाकर केलेका झाड अपने नीचे बैठनेवालेको सुख विश्रांति नहीं देता ? इस लिये शीघ्र कृपा कर आज मेरी विनय स्वीकार कर देशाटन करनेवाले सत्पुरुष किसीकी विनंती किसी समय भी व्यर्थ नहीं जाने देते हैं." रत्नसारके मनमें अश्व परसे उतरने के लिये प्रथमहीसे मनमें विचार आया था, पश्चात् मानो शुभ शकुन हुवे हों, ऐसे तापसकुमारके वचन सुनकर वह नीचे उतरा. चिरपरिचित मित्रके भांति मनसे तो वे पहिले मिले थे, अब उन्होंने एक दूसरेके शरीरको आलिंगन करके मिलाप किया व पारस्परिकप्रीतिको दृढ रखनेके हेतुसे एक दूसरेसे हस्तमिलाप कर वे दोनों कुछ देर तक इधर उधर फिरते रहे. उस समय उनकी शोभा वनमें क्रीडा करते हुए दो हाथीके बच्चोंके समान मालूम होती थी. तापसकुमारने उस बनमेंके पर्वत, नदियां, तालाब, क्रीडास्थल आदि