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बनवाया, व छः मास तक उसे काम में लेकर एक द्रहमें डाल दिया. भक्ष्य वस्तु समझकर एक मच्छी उसे निगल गई. धीरने वह मछली पकड़ी तो उसके पेटमेंसे उक्त बाट निकला. नामपर से पहिचानकर धीवरने वह बाट श्रेष्ठीको दिया. जिससे श्रेष्ठीको तथा उसके समस्त परिवारको शुद्धव्यवहार पर विश्वास उत्पन्न होगया. इस तरह श्रेष्ठीको बोध हुआ तब वह सम्यक् प्रकारसे शुद्धव्यवहार करके बडा धनवान होगया. राजद्वार में उसका मान होने लगा. वह श्रावकों में अग्रसर व सब लोगों में इतना प्रख्यात हुआ कि, उसका नाम लेनेसे भी विघ्न, उपद्रव दूर होने लगे. वर्तमानसमय में भी मल्लाह लोग नौका चलाते समय " हेला, हेला " ऐसा कहते सुनते हैं " " इत्यादि
विवेकी पुरुषने सर्व पापकर्म त्यागना चाहिये. उसमें भी अपने स्वामी, मित्र, अपने ऊपर विश्वास रखनेवाला, देव, गुरु, वृद्ध तथा बालक इनके साथ चैर करना अथवा उनकी धरोहर दवा जाना ये उनकी हत्या करनेके समान हैं, अतएव ये तथा अन्य महापातकों का अवश्य त्याग करना चाहिये : कहा है कि-
कूटसाक्षी दीर्घरोषी, विश्वस्तन्नः कृतघ्नकः ।
चत्वारः कर्मचाण्डालाः, पञ्चमो जातिसम्भवः ॥ १ ॥
झूठी साक्षी भरनेवाला, बहुत समय तक रोष रखनेवाला, विश्वासघाती और कृतघ्न ये चारों कर्मचांडाल ( कर्म से हुए