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कृत्य बिगडते हैं । स्त्रियोंको कोई उद्यम न हो तो वे चपलस्वभाव से बिगडती हैं । गृहकृत्यों में स्त्रियोंका मन लगा देने ही -- से उनकी रक्षा होती है । श्रीउमास्वातिवाचकजीने प्रशमरति - ग्रन्थ में कहा है कि, पुरुषने पिशाचका आख्यान सुनकर और कुल aar निरन्तर रक्षण हुआ देखकर अपनी आत्माको संयमयोग से से सदैव उद्यममें रखना. स्त्रीको अपने से अलग नहीं रखना यह कहा इसका कारण यह है कि, प्रायः परस्पर दर्शन ही में प्रेमका वास है. कहा है कि – देखनेसे, वार्तालाप करनेसे, गुणके वर्णनसे, इष्टवस्तु देनेसे, और मनके अनुसार बर्ताव करने से पुरुषमें स्त्रीका प्रेम दृढ़ होता है. न देखनेसे, अतिशय देखने से, मिलने पर न बोलने से, अहंकारसे और अपमान से प्रेम घटता है । पुरुष नित्य देशाटन करता रहे तो स्त्रीका मन उस परसे उतर जाता है, और उससे कदाचित् वह अनुचित कृत्य भी करने लगती है, इसलिये स्त्रीको अपनेसे अलग न रखना चाहिये । (१५ )
अवमाणं न पयंसइ, खलिए सिक्खेइ कुविअमणुणेइ ॥ घणहाणिवुड्डिघर मंतवइयरं पयडइ न ती ॥ १६ ॥
अर्थ :- पुरुष अकारण क्रोधादिकसे अपनी स्त्रीके सन्मुख " तेरे ऊपर और विवाह कर लूंगा " ऐसे अपमानजनक वचन न प्रकट करे, कुछ अपराध भी हुआ हो तो उसको एकान्तमें ऐसी शिक्षा दे कि जिससे वह पुनः वैसा अपराध न करे. विशेष