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का बदला देगा | अरेरे ! वैरका परिणाम कैसा अपार व असह्य है ? आरोप लगानेसे धनमित्रके सिरपर आरोप आया । धनमित्रके पुण्यसे आकर्षित हो सम्यग्दृष्टिदेवताने व्यंतरसे बलात्कार पूर्वक वह हार छुडाया ।" ज्ञानीके ये वचन सुनकर संवेग पाये हुए राजा तथा धनमित्रने राजपुत्रको गादी पर बिठा दीक्षा ले सिद्धि प्राप्त की .........इत्यादि ।
(मूल गाथा.) मज्झण्हे जिणपूआ, सुपत्तदाणाइजुत्ति भुंजित्ता॥ पच्चक्खाइ अ गीअत्थ
अंतिए कुणइ सज्झाय ॥८॥ अर्थः- दुपहरके समय पूर्वोक्तविधिसे उत्तम कमोदके चावल इत्यादिसे तैयार की हुई सम्पूर्ण रसोई भगवानके सन्मुख धरके दूसरी बार पूजाकर, तथा सुपात्रको दानआदि देनेकी युक्ति न भूलते स्वयं भोजन करके गीतार्थगुरुके पास जाना
और वहां पच्चखान व स्वाध्याय करना । मध्यान्हकी पूजा तथा भौजनका काल नियमित नहीं । जव तीव्र क्षुधा लगे वही भोजनका काल समझनेकी रूढि है । अतएव मध्यान्हके पहिले भी ग्रहण किया हुआ पच्चखान पालकर, देवपूजा करके भोजन करे तो दोष नहीं। वैद्यशास्त्रमें तो ऐसा कहा है कि