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(४९२) ऐक्यता ही से निर्वाह तथा शोभा आदि सम्भव है. इसलिये वे कार्य सबकी सम्मातिसे करना चाहिये । स्वजनोंके साथ ऐक्यता रखनेके ऊपर पांच अंगुलियोंका उत्कृष्ट उदाहरण है, यथाः
प्रथम तर्जनी ( अंगूठके पासकी ) अंगुली लिखने में तथा चित्रकलाआदि प्रायः सर्वकार्यों में अग्रसर होनेसे तथा संकेत. करनेमें, उत्कृष्टवस्तुका वर्णन करनेमें, मना करनेमें, चिमटीआदि भरनेमें चतुर होनेसे अहंकारवश मध्यमा (बीचकी) अंगुलीको कहती है कि, " तुझमें क्या गुण हैं ?" मध्यमा बोली- " मैं सर्व अंगुलियों में मुख्य, बडी और मध्यभागमें रहनेवाली हूं, तंत्री, गीत, तालआदि कलामें कुशल हूं, कार्यकी उतावल बतानेके लिये अथवा दोष, छलआदिका नाश करनेके हेतु चिमटी बजाती हूं, और टचकारेसे शिक्षा करने वाली हूं." इसी प्रकार तीसरी अंगुलीसे पूछा तब उसने कहा कि, " देव, गुरु,स्थापनाचार्य साधर्मिकआदिकी नवांगआदिमें चन्दन पूजा, मंगलिक, स्वस्तिक, नंद्यावर्तआदि करनेका, तथा जल, चन्दन, वासक्षेपचूर्ण आदिका अभिमंत्रण करना मेरे आधीन है." पश्चात् चौथी अंगुलीको पूछा तो उसने कहा कि, "मैं पतली होनेसे कान खुजलानाआदि सूक्ष्म काम कर सकती हूं, शरीरमें कष्ट आने पर छेदनआदि पीडा सहती हूं, शाकिनी आदिके उपद्रव दूर करती हूं, जपकी संख्याआदि