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डकार, हास्यआदि करना पडे तो मुंह ढांक कर करना तथा सभामें नाक नहीं खुतरना, हाथ नहीं मरोडना, पलांठी नहीं वालना, पग लम्बे नहीं करना व निन्दा विकथाआदि बुरी
चेष्टा नहीं करना । अवसर पर कुलीनपुरुष केवल मुसकरा कर हंसी प्रकट करते हैं, खडखड हंसना अथवा अधिक हंसना सर्वथा अनुचित है। बगल बजानाआदि अंगवाद्य बजाना, निष्प्रयोजन तृणके टुकडे करना, हाथ अथवा पैरसे भूमि खोदना, नखसे नख अथवा दांत घिसना आदि चेष्टाएं अनुचित हैं। विवेकीपुरुषोंने भाट, चारण, ब्राह्मणआदि द्वारा की हुई अपनी प्रशंसा सुनकर अहंकार न करना चाहिये । तथा ज्ञानी पुरुष प्रशंसा करे तो उससे मात्र यह निश्चय करना कि अपनेमें अमुक गुण है, किन्तु अहंकार न करना । दूसरेके वचनोंका अभिप्राय बराबर ध्यानमें लेना तथा नीचमनुष्य अयोग्य वचन बोले तो उसका प्रतिवाद करनेके लिये वैसे ही वचन अपने मुखमेंसे कदापि नहीं निकालना । जो बात अतीत, अनागत तथा वर्तमानकालमें भरोसा रखनेके योग्य न हो, उसमें अपना स्पष्ट अभिप्राय नहीं प्रकट करना । किसी मनुष्यके द्वारा कोई कार्य कराना निश्चित किया हो तो उक्त कार्य उस मनुष्यके सन्मुख प्रथमहीसे किसी दृष्टान्त अथवा विशेष प्रस्तावना द्वारा प्रकट करना । किसीका वचन अपने निश्चित कार्यके अनुकूल हो तो कार्यसिद्धिके अर्थ उसे अवश्य मानना ।