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अवयवोंको धारण करनेवाला सेचनक नामक भद्रजातिका हाथी हुआ. जिस समय उसने लाख ब्राह्मगोंको जिमाया था, उस समय ब्राह्मणों के जीमते बचा हुआ अन्न एकत्रित कर सुपात्रको दान देनेवाला दूसरा एक दरिद्री ब्राह्मण था, वह सुपात्रदानके प्रभावसे सौधर्मदेवलोकमें जा, वहांसे च्यवकर पांचसौ राजकन्याओंसे विवाह करनेवाला नंदिषेण नामक श्रोणकपुत्र हुआ. उसे देखकर सेचनकको जातिस्मरण ज्ञान हुआ, तथापि अन्तमें वह प्रथम नरकको गया.
३ अन्यायसे उपार्जित द्रव्य और सुपात्रदान इन दोनोंके योगसे तीसरा भंग होता है. उत्तमक्षेत्रमे हलका बीज बोनेसे जैसे अंकुर मात्र ऊगता है, परन्तु धान्य नहीं उपजता, वैसेही इससे परिणाममें सुख होता है, जिससे राजा, व्यापारी और अत्यारम्भसे धनोपार्जन करनेवाले लोगोंको वह मान्य होता है । कहा है कि--यह लक्ष्मी काशयष्टिके समान सार व रस रहित होते हुए भी धन्यपुरुषोंने उसे सातक्षेत्रोंमें बोकर सांटेके समान कर दिया । गायको खली देनेसे उसका परिणाम धके रूपमें होता है, और दूध सर्पको देनेसे उसका परिणाम विषके रूपमें आता है । सुपात्र तथा कुपात्रमें वस्तुका उपयोग करनेसे ऐसे भिन्न २ परिणाम होते हैं, अतएव सुपात्र ही में करना श्रेष्ठ है । स्वातिनक्षत्रका जल सपके मुंहमें पडे तो विष और सीपके संपुटमें पडे तो मोती होता है । देखो, वही स्वाति