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(४५३) धनपर निर्वाह चलानेवाला पुरुष प्रायः अन्यायी, कलह करनेवाला, अहंकारी और पापकर्मी होता है । जैसा कि रंक. श्रेष्ठी था । यथाः
मारवाड देशान्तर्गत पालीग्राममें काकूयाक और पाताक नामक दो भाई थे । जिनमें छोटा भाई पाताक धनवन्त व बड़ा भाई काकूयाक महान् दरिद्री था । और इसी कारण काकूयाक पाताकके घर चाकरी करके अपना निर्वाह करता था । एकसमय वर्षाकालके दिनमें बहुत परिश्रम करनेसे थका हुआ काकूयाक रात्रिको सो रहा । इससे पाताकने उपका देकर कहा कि, " भाई ! अपने खेतकी क्यारिएं अधिक पानी भरनेसे फट गई, तो भी क्या तुझे उसकी कोई चिन्ता नहीं ? " यह सुन काकूयाक शीघ्र बिछौना त्याग, दूसरेके घर चाकरी करनेवाले अपने जीवकी निन्दा करता हुआ कुदाली लेकर खेतको गया । और कुछ लोगोंको फटी हुई क्यारियोंको पुनः ठीक करते देखकर उसने पूछा कि, " तुम कौन हो ?" उन लोगोंने उत्तर दिया-" हम तेरे भाईके चाकर हैं " उसने पुनः पूछा कि, “ मेरे चाकर भी कहीं हैं ?" उन्होंने कहा कि, “वल्लभी पुरमें हैं । " कुछ समयके बाद अवसर मिलते ही काकूयाकसपरिवार वल्लभीपुरको गया । वहां एक मोहल्लेमें गडरिये रहते थे। उनके पास एक घासका झोपडा बांधकर तथा उन्हीं लोगोंकी सहायतासे उसमें एक दुकान लगाकर रहने लगा।