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रखनेवाले मनुष्यकी संगति करना, लोकमान्य पुरुषका मानभंग करना, सदाचारीलोगों के संकट में आनेपर प्रसन्न होना, शक्ति होते हुए आपत्तिग्रसित अच्छे मनुष्य की सहायता न करना. देशोचित रीतिरिवाजको छोड़ना, धनके प्रमाणसे विशेष स्वच्छ अथवा विशेष मलीन वस्त्रादि धारण करना इत्यादि बातें लाकविरुद्ध कहलाती हैं. इनसे इस लोकमें अपयश आदि होता है. वाचकशिरोमणि श्रीउमास्वातिवाचकजीने कहा है किलोकः खल्वाधारः, सर्वेषां धर्मचारिणां यस्मात् । तस्माल्लोकविरुद्धं, धर्मत्रिरुद्धं च संत्याज्यम् ॥ १ ॥ समस्तधर्मी मनुष्यों का आधार लोक है. इसलिये जो बात धर्मविरुद्ध अथवा लोकविरुद्ध होवे उसको सर्वथा त्याग देना चाहिये. इससे अपने ऊपर लोगोंकी प्रीति उत्पन्न होती है, स्वधर्माराधन होता है और सुखपूर्वक निर्वाह होता है. कहा है कि-- लोकविरुद्धवातको छोड़नेवाला मनुष्य समस्तलोगों को प्रिय होता है और लोकप्रिय होना यह समकित - वृक्षका बीज है.
धर्मविरुद्ध -- मिथ्यात्वकृत्य करना, मनमें दया न रखते बैलआदिको मारना, बांधना आदि, जूएं, खटमल आदिको धूपमें डालना, सिरके बाल बडी कंघी से समारना, लीखेंआदि फोडना, उष्णकाल में तीन बार और बाकी के कालमें दो बार मजबूत, जाडे व बड़े गलणेसे संखाराआदि करने