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पन्नत्ते धम्मे आघवत्ता जाव ठावइत्ता भवइ तेणामेव तस्स भट्टिस्स सुपडियारं भवइ २ ॥
कोई धनाढ्य पुरुष किसी दरिद्रीमनुष्यको धनादि देकर सुदशा में लावे, और वह मनुष्य सुदशा में आया, उस समयकी भांति उसके बाद भी सुखपूर्वक रहे, पश्चात् उक्त धनाढ्य feat are स्वयं दरिद्री होकर उसके पास आवे, तब वह अपने उस स्वामीको चाहे सर्वस्व अर्पण करदे, तो भी वह उसके उपकारका बदला नहीं चुका सकता । परन्तु यदि वह अपने स्वामीको केवलिभाषित धर्म कह समझाकर और अंतर्भेद सहितकी प्ररूपणा कर उस धर्म में स्थापन करे, तभी वह स्वामीक उपकारका बदला चुका सकता है ।
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केइ तहारूवस्स समणस्स वा माहणस्स वा अंतिए एमवि आरिअं धम्मिअं सुवयणं सुच्चा निसम्म कालमासे कालं किच्चा अन्नरेसु देवलोगेसु देवत्ताए उववण्णे || तए णं से देवे तं धम्मायरियं दुभिक्खाओ वा देसाओ सुभिक्खं देसं साहरिज्जा, कंताराओ निक्कं तारं करिज्जा, दीहकालिएणं वा रोगायंकेण अभिभूअं विमोइज्जा, तेणावि तस्स धम्मायरियस्स दुप्पडियारं भवइ । अहे णं से तं धम्म:यरिअं केवलिपन्नत्ताओ धम्माओ भट्टं समाणं भुज्जो केवलिपन्नत्ते धम्मे आघवत्ता जाव ठावइत्ता भवइ तेणामेव तस्स धम्मायरियस्त सुपडियारं भवइ ३ ॥