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(४४८) किराना अपने घर लेगया. उसी दिन रात्रिको चोरों ने यशश्रेष्ठीका संपूर्ण किराना लूट लिया. प्रातःकालमें किरानेके बहुतसे ग्राहक आये जिससे दुना तिगुना मूल्य मिलनेके कारण देवश्रेष्ठीको बहुत लाभ हुआ. पश्चात् यशश्रेष्ठी भी पश्चाताप होनेसे सुश्रावक हुआ. और शुद्धव्यवहारसे द्रव्योपार्जन करके सुख पाया..........इत्यादि. .
इस विषय पर लौकिकशास्त्रमें भी एक दृष्टांत कहा है कि:
चम्पानगरीमें सोम नामक राजा था. उसने मन्त्रीको पूछा कि “ सुपर्वमें दान देनेके योग्य श्रेष्ठद्रव्य कौनसा है ?
और दान लेनेको सुपात्र कौन है ? " मन्त्रीने उत्तर दिया. " इस नगरमें एक सुपात्र ब्राह्मण है. परन्तु न्यायोपार्जित शुभद्रव्यका योग मिलना सब लोगोंको और विशेषकर राजा को दुर्लभ है. कहा है कि
दातुर्विशुद्धवित्तस्य, गुणयुक्तस्य चार्थिनः ।
दुर्लभः खलु संयोगः, सुबीजक्षेत्रयोरिव ॥१॥ जैसे उत्तमीज व उत्तम खेतका योग मिलना कठिन है, वैसेही शुद्धचित्त दाता और योग्य गुणवन्त पात्र इन दोनोंका योग मिलना भी दुर्लभ है." यह सुन सोमराजाने पर्वके ऊपर शुद्धदान देनेके हेतुसे गुप्त वेश धारण कर आठ दिन तक रात्रिके समय वणिकलोगोंकी दुकान पर जाकर साधारण वणिक्--पुत्रके समान काम किया,