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(४३४) लिये बिना गमन न करना, जहां मुकाम किया हो वहां अधिक नींद न लेना तथा साथ आनेवाले लोगोंका विश्वास नहीं रखना । सैकड़ों कार्य हो तो भी अकेले कहीं न जाना । देखो एक कर्कट ( केंकडा) के समान क्षुद्रजीवने ब्राह्मणकी रक्षा करी थी। अकेले मनुष्यने किसीके घर नहीं जाना । किसीके घरमें आडे मार्गसे (जो द्वार चालू न हो) उससे भी प्रवेश न करना ।
बुद्धिमान पुरुषने जीर्णनावमें न बैठना, अकेले नदीमें प्रवेश न करना और सहोदरभाईके साथ मार्गप्रवास नहीं करना । अपने पास साधन न हो तो जल तथा थलके विषम प्रदेश, घोरवन तथा गहरेजलका उल्लंघन न करना । जिस समुदायमें बहुतसे लोग क्रोधी, सुखके अभिलाषी और कृपण होवें वह अपना स्वार्थ खो बैठता है । जिसमें सब लोग नालायक होते हैं, सब अपने आपको पंडित मानते हैं, तथा बड़प्पन चाहते हैं वह समुदाय दुर्दशा में आ पडता है । जहां कैदियोंको तथा फांसीकी शिक्षा पाये हुए लोगोंको रखते हों, जहां जुआ खेला जाता हो, जहां अपना अनादर होता हो, वहां तथा किसीके खजानेमें और अन्तःपुरमें न जाना चाहिये । दुर्गन्धियुक्त स्थल, स्मशान, शून्यस्थान, बाजार, जहां फोतरे व सूखा घास बहुत बिछा हुआ हो, जहां प्रवेश करते बहुत दुःख होता हो तथा जहां कूडा कचरा डाला जाता हो ऐसा स्थान, खारी