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इत्यादि प्रत्युत्तर भाषासमितिसे देना । राजा, गुरू आदि बडे पुरुष उपरोक्त आठ बातें पूछे तो परमार्थसे यथावत् कह देना। कहा है कि
सत्यं मित्रैः प्रियं स्त्रीभिरलीकमधुरं द्विषा ।
अनुकूलं च सत्यञ्च, वक्तव्यं स्वामिना सह ॥ १॥" मित्रोंके साथ सत्यवचन बोलना, स्त्रीके साथ मधुरवचन बोलना, शत्रुके साथ असत्य परंतु मधुरवचन बोलना और अपना स्वामीके साथ उनको अनुकूल होवे ऐसा सत्यवचन बोलना। सत्यवचन मनुष्यको बडा आधार है । कारण कि, सत्यवचन ही से विश्वास आदि उत्पन्न होता है । इस विषयपर एक दृष्टांत सुनते हैं कि:
दिल्लीनगरमें एक साधुमहणसिंह नामक वणिक् रहता था. उसकी सत्यवादिताकी कीर्ति सर्वत्र फेल रही थी. बादशाहनें एक दिन परीक्षाके हेतुसे उसे पूछा कि, " तेरे पास कितना धन है?" उसने उत्तर दिया. "मैं बहीमें लेखा देख कर कहूंगा" ऐसा कह उसने सम्यक् रीतिसे सब लेखा देखकर कहा कि, " मेरे पास अनुमान चोरासी लाख टंक होंगे.". मैंने थोडाही द्रव्य सुना था व इसने तो बहुत कहा. यह विचार कर बादशाह बहुत प्रसन्न हुआ और उसे अपना भंडारी नियुक्त किया.
इसी तरह खंभातनगरमें प्राणान्त संकट आने परभी सत्यवचन न छोडे ऐसा श्रीजगच्चंद्रसूरिका शिष्य भीम