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शान्तिकारक न्हवण जल अपनी स्त्रियोंकी तरफ भेजा. तरुणदासियोंने शीघ्र जाकर दूसरी रानियों के सिर पर उसे (न्हवण-जल छींटा, परन्तु बडी रानीको पहुंचानका जल कंचुकी ( अन्तःपुर रक्षक ) के हाथमें आया वृद्धावस्था होने के कारण उसे पहुंचनेमें विलम्ब हुआ, तब बड़ी रानीको शोक तथा कोप हुआ. पश्चात् कंचुकीने आकर क्रोधित रानी पर उस न्हवण-जलका अभिषेक किया, तब उसका चित्त और शरीर शीतल हुए तथा कंचुकी पर हृदय प्रसन्न हुआ।
बृहच्छांतिस्तवमें भी कहा है कि-- स्नात्र-जल मस्तकको चढाना. सुनते हैं कि-श्रीनेमिनाथ भगवानके वचनसे कृष्णजीने नागेन्द्रकी आराधना करके पातालमेंसे श्रीपार्श्वनाथजीकी प्रतिमा शंखेश्वरपुरमें ला उसके न्हवण-जलसे, अपना सैन्य जो कि जरासंधकी की हुइ जरासे पीडित हुआ था उसे आरोग्य किया. आगममें भी कहा है कि- जिनेश्वर भगवानकी देशनाके स्थान पर राजा आदि लोगोंने उछाला हुआ अन्नका बलि पीछा भूमि पर पडनेके पहिले ही देवता उसका आधा भाग लेते हैं. आधेका आधा भाग राजा लेता है और शेष भाग अन्य लोग लेते हैं. उसका एक दानामात्र भी शिरपर रखनेसे रोग नष्ट होता है तथा छःमास तक अन्य रोग नहीं होता। पश्चात् सद्गुरुने स्थापन किया हुआ, भारी महोत्सवसे लाया हुआ, और दुकूलादि श्रेष्ठ वस्त्रसे सुशोभित ऐसा महाध्वज तीन प्रदक्षिणा तथा बलि