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परस्पर कलह न हो इस उद्देशसे धनावह श्रेष्ठीने अपनी संपत्ति दोनों पुत्रोंमें बांटकर उन्हें पृथक् २ रखे तथा स्वयं स्त्रीके साथ दीक्षा ले स्वर्गको गया.
कर्मसार अपने स्वजनसंबंधियोंका वचन न मानकर अपनी कुबुद्धिसे ऐसे २ व्यापार करने लगा कि उनमें उसे धनहानि ही होती गई व थोडे दिनोंमें पिताकी दी हुई सर्व सम्पत्ति गुमादी. पुण्यसारकी संपत्ति चोरोंने लूट ली. दोनों भाई निधन होगये व स्वजनसंबंधीलोगोंने उनका नाम तक छोड दिया. दोनोंकी स्त्रियां अन्न वस्त्र तकका अभाव हो जानेसे अपने २ पियर चली गई। कहा है कि
अलि अपि जणो घणवंतयस्स सयणत्तणं पयासेइ । आसण्णबंधवणवि, लज्जिज्जइ झीणविहवेण ॥१॥
लोग धनवानपुरुषके साथ अपना झूठ मूठ ही सम्बन्ध प्रकट करने लगते हैं और किसी निर्धनके साथ वास्तविक सम्बन्ध होवे तो भी उससे संबंध दिखाने में भी शरमाते हैं । धन चला जाता है, तब गुणवान पुरुषको भी उसके परिवारके लोग निर्गुणी मानते हैं और चतुरता आदि झूठे गुणोंकी कल्पना करके परिवारके लोग धनवान पुरुषोंके गुण गाते हैं । पश्चात् जब "तुम बुद्धिहीन हो, भाग्यहीन हो" इस तरह लोग बहुत निन्दा करने लगे, तब लज्जित हो दोनों जने देशान्तर चले गये, अन्य कोई उपाय न रहनेसे दोनों किसी बडे श्रेष्ठीके यहां