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विरतिकी प्राप्ति होती है व अंगीकार की हुई देशविरति अथवा सर्वविरतिकी सर्वप्रकारसे एकाग्रमनसे आराधना होती है. इत्यादिक अनेक गुण है. वे नास्तिक प्रदेशी राजा, आमराजा, कुमारपाल, थावच्चापुत्र इत्यादिक दृष्टान्तसे जानना चाहिये. कहा है कि"मोहं धियो हरति कापथमुच्छिनत्ति, संवेगमुन्नमयति प्रशमं तनोति । सूते विरागमधिकं मुदमादधाति, जैनं वचः श्रवणतः किमु यन्न दत्ते ।। - जिनेश्वरभगवानका बचन सुने तो बुद्धिका मोह चला जावे, कुपन्थका उच्छेद होजावे, मोक्षकी इच्छा बढे, शांतिका विस्तार हो अधिक वैराग्य उपजे, व अतिशय हर्ष आदि उत्पन्न हो. ऐसी कौनसी वस्तु है कि; जो जिनेश्वरभगवानका वचन सुननेसे न मिले ? अपना शरीर क्षणभंगुर है, बांधव बंधन समान है, लक्ष्मी विविध अनर्थको उत्पन्न करनेवाली है, अतः जैन-सिद्धान्त सुनना जिससे संवेग आदि उत्पन्न होता है, तथा यह सिद्धान्त मनुष्य पर उपकार करनेमें किसी भी प्रकारकी कमतरता नहीं रखता। प्रदेशी राजाका संक्षेप वर्णन इस प्रकार है:
श्वेताम्बीनगरीमें प्रदेशी नामक राजा व चित्रसारथी नामक उसका मंत्री था. मंत्रीने चतुर्मानी श्रीकेशिगणधरसे श्रावस्तिनगरीमें श्रेष्ठ श्रावकधर्म अंगीकार किया था. एक बार उसके आग्रहसे श्रीकेशिगणधर श्वेताम्बीनगरीमें आये. मंत्री