________________
(३७३)
rror वैद्य धन्वन्तरिकी भांति जाति २ की औषधि आदिके कपटसे लोगों को ठगते हैं। थोडा लोभ रखनेवाले, परोपकारी व उत्तमप्रकृतिके जो वैद्य हैं, उनकी वैद्यविद्या ऋषभदेवभगवानके जीव जीवानंद वैद्यकी भांति इसलोक तथा परलोकमें गुणकारी जानो ।
खेती तीन प्रकारकी है । एक बरसाद के जलसे होनेवाली दूसरी कुएआदिके जलसे व तीसरी दोनोंके जलसे होनेवाली । गाय, भैंस, बकरी, बैल, घोडा, हाथी आदि जानवर पालकर अपनी आजीविका करना पशुरक्षावृत्ति कहलाती है । वह जानवरोंके भेद से अनेक प्रकारकी है। खेती और पशुरक्षावृत्ति ये दोनो विवेक मनुष्यको करना योग्य नहीं । कहा है किगयाण दंतिदंते बद्दल्लखंधेसु पामरजणाणं ।
सुहडाण मंडलग्गे, वेसाण पओहरे लच्छी ॥ १ ॥
हाथी दांत में राजाओं की लक्ष्मी, बैलके कंधेपर कृषकों की लक्ष्मी, खड्गकी धारपर योद्धाओं की लक्ष्मी तथा श्रृंगारे हुए स्तनपर वेश्याओं की लक्ष्मी रहती है । कदाचित् अन्य कोई वृत्ति न होवे और खेती ही करना पडे तो बोनेका समय आदि बराबर ध्यान में रखना । तथा पशुरक्षावृत्ति करना पडे तो मनमें पूर्ण दया रखना. कहा है कि जो कृषक बोनेका समय, भूमिका भाग तथा उसमें कैसा धान्य पकता है, इसे अच्छी तरह जानता है, और मार्ग में आया हुआ खेत छोड़ देता है, उसीको बहुत