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बुद्धि, वीरता और प्रीति ये तीन गुण होवें, वहीं राजाके संपत्काल तथा विपत्कालमें उपयोगी होने योग्य है, और जिसमें ये गुण.न होवें, वह सेवक स्त्रीसमान है। कदाचित राजा प्रसन्न होजाय तो सेवकोंको मात्र मान देता है, परन्तु सेवक तो उस मानके बदलेमें अवसर आने पर अपने प्राण तक देकर राजाका उपकार करते हैं। सेवकने राजादिकी सेवा बडी चतुराईसे करनी चाहिये । कहा है किसेवकने सर्प, व्याघ्र, गज व सिंह ऐसे क्रूरजन्तुओंको भी उपायसे वश किये हुए देखकर मनमें विचारना कि, बुद्धिशाली व चतुरपुरुषोंके लिये " राजाको वश करना" कौनसी बड़ी बात है ? राजादिको वश करनेकी रीति नीतिशास्त्रआदिग्रन्थों में इस प्रकार कही है:-चतुरसेवकने स्वामीकी बाजूमें बैठना, उसके मुख तरफ दृष्टि रखना, हाथ जोडना, और स्वामीके स्वभावानुसार सर्व कार्य साधना. सेवकने सभामें स्वामीके बहुत समीप नहीं बैठना तथा बहुत दूर भी न बैठना, स्वामीके बराबर अथवा उससे ऊंचे आसन पर न बैठना, स्वामीके सन्मुख व पीछे भी न बैठना, कारण कि, बहुत समीप बैठनेसे स्वामीको ग्लानि होती है तथा बहुत दूर बैठे तो बुद्धिहीन कहलाता है, आगे बैठे तो अन्य किसीको बुरा लगे और पीछे बैठे तो स्वामीकी दृष्टि न पडे, अतएव उपरोक्त कथनानुसार बैठना चाहिये।