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उसके स्थान पर हाथ में रांपी रखनेवाले एक मोचीको नियुक्त किया. वह कामकाज के कागजों पर सहीकी निशानी के रूप में रांपी लिखता था. उसका वंश अभी भी दिल्लीमें मान्य है.
इस प्रकार राजादिक प्रसन्न होवें तो ऐश्वर्य आदिका लाभ होना अशक्य नहीं. कहा है कि-सांटे का खेत, समुद्र, योनिपोषण और राजाका प्रसाद ये तत्काल दरिद्रता दूर करते हैं. सुखकी इच्छा करनेवाले अभिमानी लोग राजाआदि की सेवाकी भले ही निन्दा करें; परन्तु राजसेवा किये बिना स्वजनका उद्धार और शत्रुका संहार नहीं हो सकता. कुमारपाल भाग गया तब वोसिरब्राह्मणने उसे सहायता दी, जिससे उसने प्रसन्न हो अवसर पाकर उस ब्राह्मणको लाटदेशका राज्य दिया. देवराजनामक कोई राजपुत्र जितशत्रुराजाके यहां पौरियेका काम करता था. उसने एक समय सर्पका उपद्रव दूर किया, जिससे प्रसन्न हो राजा जितशत्रुने देवराजको अपना राज्य दे स्वयं दीक्षा लेकर सिद्धि प्राप्त की. मन्त्री, श्रेष्ठी, सेनापति आदि के कार्यों का भी राजसेवामें समावेश हो जाता है. ये मन्त्रीआदिके कार्य बड़े पापमय हैं, और परिणाममें कडुवे हैं. इसलिये वास्तवमें श्रावकके लिये वर्जित हैं. कहा है कि- जिस मनुष्यको जिस अधिकार पर रखते हैं वह उसमें चोरी किये बिना नहीं रहता. देखो, क्या धोबी अपने पहरने - के व मोल लेकर पहिनता है ? मनमें अधिकाधिक चिन्ता