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योग्य पंच महायज्ञ हैं. सोमनीति में भी कहा है कि-- राजाने अपने पुत्रको भी अपराधके अनुसार दंड देना चाहिये. अतएव इसके लिये जो योग्य दंड हो सो कहो. " राजाके इतना कहने पर भी जब वे विद्वान लोक कुछ न बोले तब राजाने 'जो जीव किसी अन्यजीव को जिस प्रकार व जो दुःख दे, उसको बदले में उसी प्रकार से वही दुःख मिलना चाहिये.' तथा 'कोई अपकार करे तो उसको अवश्य बदला देना चाहिये' इत्यादि नीतिशास्त्र के वचन परसे, स्वयं ही पुत्रको दंड देनेका निर्णय किया. पश्चात् घोडी मंगाकर पुत्रको कहा- 'तू यहां मार्ग में लेट रह पुत्र भी विनीत था इससे पिताकी आज्ञा मान मार्गमें लेट गया. राजाने सेवकोंको कहा कि, 'इसके ऊपर से दौड़ती हुई घोडी ले जाओ' परंतु कोई भी ऐसा करने को तैयार नहीं हुआ. तब सब लोगोंके मना करते हुए भी राजा स्वयं घोडी पर सवार होकर ज्योंही घोडीको दौड़ाकर पुत्रके शरीर पर लेजाने लगा, इतने ही में राज्यकी अधिष्ठायिका देवीने प्रकट हो पुष्पवृष्टि करके कहा कि, ' हे राजन् ! मैंने तेरी परीक्षा की थी. प्राणसे भी वल्लभ निजपुत्रसे भी तुझे न्याय अधिक प्रिय है, इसमें संशय नहीं, अतएव तू चिरकाल तक निर्विघ्न राज्य कर इत्यादि.
अब जो राजाके अधिकारी हैं, वे यदि अभयकुमार, चाणक्यकी भांति राजा व प्रजा दोनोंके हितके अनुसार राज्य