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(३६६) पर अथवा जो उद्यम करता हो उस उद्यमको जावे. इस प्रकार अपने अपने उचित स्थानको जा कर धर्मको विरोध न आवे. उस रीतिसे द्रव्य संपादन करनेका विचार करना. जो राजा दरिद्री अथवा धनवान, मान्य अथवा अमान्य तथा उत्तम अथवा अधम मनुष्यको मध्यस्थ वृत्ति रखकर समानतासे न्याय देता है, तो उसके कार्यमें धर्म का विरोध नहीं है । यथा:
कल्याणकटकपुरमें अत्यन्त न्यायी यशोवर्मा नामक गजा था. उसने अपने राजमंदिरके द्वारमें न्यायघंटा नामक एक घंट बंधाया रखा था. एक समय राजाके न्यायकी परीशाके निमित्त राज्यकी अधिष्ठायिका देवी तत्काल प्रसूत हुई गाय व बछडेका रूप प्रकट कर राजमार्गमें बैठ गई. इतनेमें राजपुत्र बडे वेगसे दौडती हुई एक घोडी पर बैठ कर वहां आ पहुंचा. वेग बहुत होनेसे बछडेके दो पग घोडीके अडफेटमें आये व उससे बछडेकी मृत्यु होगई. तब गाय आंखमेंसे पानी टपकाते हुए चिल्लाने लगी. किसीने गायको कहा कि, " तू राजद्वार पर जाकर न्याय मांग " तब उसने वहां जाकर अपने सींगकी नोकसे न्यायघंट बजाया. राजा यशोशर्मा उस समय भोजन करते बैठा था, उसने घंटेका शब्द सुनते ही पूछा कि, “घंटा कौन बजाता है ?" सेवकोंने द्वार पर आ, देखकर कहा कि, “ हे देव ! कोई नहीं है. आप भोजन करिये " राजाने कहा. '' किसने बजाई, इसका