________________
( ३५१ )
आती. वैसे ही शरीर चाहे कैसे ही बारीक टुकडे करो तो भी उसमें जीव कहां है यह नहीं दीखता. लोहारकी धमनी वायुसे भरी हुई अथवा खाली तोलें तो भी तौल में रत्तीभर भी अन्तर नहीं होगा ? उसी तरह शरीरमें जीव होते हुए अथवा उसके निकल जाने पर शरीर तोलोगे तो अन्तर नहीं ज्ञात होगा कोठीकी अंदर बंद किया हुआ मनुष्य यदि शंख बजावे जो शब्द बाहर सुनने में आता है, परन्तु यह नहीं जान पडता कि वह शब्द किस मार्ग से बाहर आया. उसी प्रकार कोठीके अंदर बंद किये हुए मनुष्यका जीव कैसे बाहर गया और उसमें उत्पन्न हुए कीडोंका जीव कैसे अन्दर आया, यह भी नहीं ज्ञात हो सकता.'
इस प्रकार श्रीशिगणिधरने युक्तिपूर्वक उसे समझाया, तब प्रदेशी राजाने कहा- 'आप कहते हैं सो सब सत्य हैं, किन्तु कुलपरंपरा से आया हुआ नास्तिकत्व कैसे छोड़ दूं ?' श्रीकेशिगणधर ने कहा. 'जैसे कुल परंपरा से आये हुए दारिद्र्य, रोग, दुःख आदि छोड दिये जाते हैं उसी तरह नास्तिकताको भी छोड़ देना चाहिये' यह सुन प्रदेशी राजा सुश्रावक होगया उसकी सूर्यकान्ता नामक एक रानी थी. उसने परपुरुषमें आसक्त हो एकबार पोषध के पारणेके दिन राजाको विष खिलाया. वह बात तुरंत राजाके ध्यान में आगई व उसने मंत्री से कही. पश्चात् मंत्री के कहने से उसने अपना मन समाधिमें रखा और