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निमंत्रण बृहद्वंदना देनेके अनन्तर श्रावक करते हैं। जिसने साधुके साथ प्रतिक्रमण किया होवे वह श्रावक सूर्योदय होनेके अनन्तर अपने घर जाकर पश्चात् निमंत्रण करे। जिस श्रावकको प्रतिक्रमण और वन्दनाका योग न होवे, उसने भी वन्दनादिके अवसर ही पर निमंत्रणा करना चाहिये. मुख्यतः तो दूसरीबार देवपूजा कर तथा भगवान्के सन्मुख नैवेद्य रख पश्चात् उपाश्रयको जाना, तथा साधुमुनिराजको निमंत्रणा करना. श्राद्धदिन-कृत्य आदि ग्रंथों में ऐसा ही कहा है. तत्पश्चात् अवसरानुसार रोगकी चिकित्सा करावे, औषध आदि दे, उचित व पथ्य आहार वहोरावे, अथवा साधुमुनिराजकी अन्य जो अपेक्षा होवे वह पूर्ण करे. कहा है कि--
" दाणं आहाराई, ओसहवत्थाई जस्स जं जोग्गं । णाणाईण गुणाणं, उवठभणहेउ साहूणं ॥१॥"
साधुमुनिराजके ज्ञानादिगुणको अवलम्बन देनेवाला चतुर्विध आहार, औषध, वस्त्र आदि जो मुनिराजके योग्य हो वह उनको देना चाहिये।
साधुमुनिराज अपने घर बहोरने आवे, तब जो जो योग्य वस्तु होवें, वे सर्व उनको वहोराना, और सर्व वस्तुओंका नाम लेकर नित्य कहना कि, 'महाराज ! अमुक अमुक वस्तुकी जोगवाइ है। ऐसा न कहनेसे पूर्व की हुई निमंत्रगा निष्फल होती है। नाम देकर सर्व वस्तुएं कहने पर भी कदाचित् मुनिराज न