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जो अपने ही लिये एकाध माला नपा बनवाया होवे अथवा उस घर में अन्य कोई नया काम बढाया होवे तो उसका खर्च भाडेमेंसे नहीं लिया जा सकता, कारण कि उससे साधारणद्रव्यके उपभोगका दोष आता है । कोई साधर्मी भाई बुरी अवस्थामें होवे तो वह संघकी सम्मतिसे साधारणखातेके घरमें बिना भाडे रह सकता है। वैसे ही अन्यस्थान न मिलनेसे तीर्थादिकमें तथा जिनमंदिर ही में जो बहुत समय रहना पडे तथा निद्राआदि लेना पडे तो जितना वापरनेमें आवे, उससे भी आधिक नकरा देना । थोडा नकरा देने पर तो प्रकट दोष है ही । इस प्रकार देव, ज्ञान और साधारण इन तीनों खातोंकी वस्त्र, नारियल, सोने चांदीकी पटली, कलश, फूल, पक्वान्न मिठाई आदि वस्तुएं उजमणेमें, नंदीमें व पुस्तकपूजामें यथोचित नकरा दिये बिना न रखना । ' उजमणाआदि कृत्य अपने नामसे विशेष आडंबरके साथ किये होवें तो लोकमें प्रशंसा हो, ऐसी इच्छासे थोडा नकरा देकर अधिक वस्तु रखना योग्य नहीं । इस विषय पर लक्ष्मीवतीका दृष्टान्त कहते हैं कि--
लक्ष्मीवती नामक एक श्राविका बहुत धनवान, धर्मिष्ठ और अपना बडप्पन चाहनेवाली थी। वह प्रायः थोडा नकरा देकर बडे आडम्बरसे विविधप्रकारके उजमणे आदि धर्मकृत्य करती तथा कराया करती थी । वह मनमे यह समझती थी कि, "मैं देवद्रव्यकी वृद्धि तथा प्रभावना करती हूं।" इस प्रकार