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ही मंदिर में पृथक् जल रखा हो, तो उस जलसे हाथ पैर धोने में हरकत नहीं. छाबडियां चंगेरी, ओरसिया आदि तथा चंदन, केशर, कपूर, कस्तूरी आदि वस्तु अपनी निश्रासे रख कर ही देवकार्य में वापरना; देवकी निश्रासे कभी न रखना. कारण किं देवकी निश्रासे न रखी होवे तो प्रयोजन पडने पर वह घर के कार्य में ली जा सकती है । इसी प्रकार भेरी, झालर आदि वार्जित्र भी साधारणखाते रखे होवें तो वे सर्व धर्मकृत्यों में उपयोग में लिये जा सकते हैं। अपनी निश्रासे रखी हुई तंबू, पडदा आदि वस्तुएं देवमंदिर में वापरनेको रखे हों तो भी उस कारणसे वह वस्तु देवद्रव्य नहीं मानी जाती. कारण कि, मनके परिणाम ही प्रमाणभूत हैं। ऐसा न हो तो, अपने पात्रमें रखा हुआ नैवेद्य भगवान् के सन्मुख रखते हैं, इससे वह पात्र भी देवद्रव्य मानना चाहिये । श्रावकने देरासरखाकी अथवा ज्ञानखातेकी घर, हाट आदि वस्तु भाडा देकर भी न वापरना चाहिये । कारण कि, उससे निश्शूकता ( बेदरकारी) आदि दोष होता है । साधारणखाते की वस्तु संघकी अनुमतिस वापरना तो भी लोक व्यवहारकी रीति के अनुसार कम न पडे इतना भाडा देना, और वह भी कही हुई मुद्दत के अंदर स्वयं ही जाकर देना । उसमें जो कभी उस घरकी भींत, पाट आदि पूर्वके हों, उनके गिरजाने पर पुनः ठीक करवाने पडे तो जो कुछ खर्च होवे, वह भाडे में से काट लेना, कारण कि ऐसा लोकव्यवहार है; परन्तु
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