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भगवान के सन्मुख दीपक करके उसी दीपकसे घरके काम न करना. वैसा करनेसे तिर्यग्योनिमें जाता है । जैसे कि--
इन्द्रपुर नगरमें देवसेन नामक एक व्यवहारी था, और धनसेन नामक एक ऊंटसवार उसका सेवक था. धनसेनके घरसे नित्य एक ऊंटनी देवसेनके घर आती थी. धनसेन उसे मार-पीट कर ले जाता तो भी वह स्नेहसे पुनः देवसेनके घर आजाती. अंतमें देवसेनने उसे मोल लेकर अपने ही घर रख ली। किसी समय ज्ञानीमुनिराजको उस ऊंटनीके स्नेहका कारण पूछने पर उन्होंने कहा कि यह ऊंटनी पूर्वभवमें तेरी माता थी, इसने भगवान् सन्मुख दीपक करके उसी दीपकसे घरके कार्य किये, धूपदानमें रहे हुए अंगारसे चूल्हा सुलगाया, उस पापकर्मसे यह ऊंटनी हुई है । कहा है कि- जो मूर्ख मनुष्य भगवानके निमित्त दीपक तथा धूप करके उसीसे घरके कार्य मोहवश करता है, वह बारंबार तियच योनि पाता है, इस प्रकार तुम्हारा दोनोंका स्नेह पूर्वभवके संबंधसे आया हुआ है, इत्यादि । इसलिये देवके सन्मुख किये हुए दीपकके प्रकाशमें पत्रादिक न पढना, कुछ भी घरका काम न करना, मुद्रा(नाणा) न परखना, देव सन्मुख किये हुए दीपकसे अपने लिये दूसरा दीपक भी न सुलगाना, भगवानके चंदनसे अपने कपालादिकमें तिलक न करना, भगवानके जलसे हाथ भी न धोना. नीचे पडीहुई भगवान्की शेषा ( चढाई हुई माला आदि)