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अब ज्ञानद्रव्य तथा साधारणद्रव्य के विषयमें दृष्टान्त कहते हैं- भोगपुर नगरमें चौबीस करोड स्वर्णमुद्राओंका अधिपति धनावह नामक श्रेष्टी था. उसकी स्त्रीका नाम धनवती था. उनके कर्मसार व पुण्यमार नामक युगल ( जोडले ) पैदा हुए, दो सुन्दर पुत्र थे. एक दिन धनावह श्रेष्ठीने किसी ज्योतिषीसे पूछा कि, "मेरे दोनों पुत्र आगे जाकर कैसे निकलेंगे?" ज्योतिषीने कहा- "कर्मसार जडस्वभावका और बहुत ही मंदमति होनेसे नानाप्रकारकी युक्तियोंसे बहुत उद्यम करेगा; परन्तु सर्व पैतृकसंपत्ति खोकर बहुत कालतक दुःखी व दरिद्री रहेगा. पुण्यसार भी पैतृक तथा कष्टोपार्जित निज सर्व द्रव्य बारम्बार खो देनेसे कर्मसार ही के समान दुःखी होवेगा तथापि यह व्यापारादि कलामें बहुत ही चतुर होगा. दोनों पुत्रोंको पिछली अवस्थामें धन, सुख, संतति आदिकी पूर्ण समृद्धि होगी."
श्रेष्ठीने दोनों पुत्रोंको सर्व विद्या तथा कलामें निपुण उपाध्यायके पास पढनेके लिये रखे. पुण्यसार सुखपूर्वक सर्व विद्याएं पढा. परन्तु कर्मसारको तो बहुतसा परिश्रम करने पर भी एक अक्षर तक न आया. अधिक क्या कहा जाय! लिखना पढना आदि भी न आया । तब विद्यागुरुने भी इसे सर्वथा पशुतुल्य समझ पढाना छोड दिया. क्रमशः दोनों पुत्र तरुण हुए तब मावापने दोनोंका दो श्रेष्ठिपुत्रियोंके साथ विवाह किया.