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हंतुसे पूजादिकमें प्रवृत्ति करते हैं । देवपूजादि शुभ कृत्य में प्रीति बहुमान और सम्यग् विधिविधान इन दोनों में खरे खोटे रुपयेके दृष्टान्त के अनुसार चार शाखाएं हैं, यथाः
खरी चादी और खरा सिक्का यह प्रथम शाखा, खरी चांदी और खोटी मुद्रा (सिका ) यह दूसरी शाखा, खग सिका और खोटो चांदी यह तीसरी शाखा तथा खोटी ही चांदी व खोटा ही सिका यह चौथी शाखा है । इसी भांति देवपूजादिकृत्योंमें भी उत्तम बहुमान व उत्तम विधि होतो प्रथम शाखा, उत्तम बहुमान होवे परन्तु विधि उत्तम न होवे तो दूसरी शाखा, विधि उत्तम होवे परन्तु बहुमान उत्तम न होवे तो तीसरी शाखा और बहुमान व विधि दोनों ही उनम न होवें तो चौथी शाखा जानो । बृहद्भाष्य में कहा है कि-- इस वन्दनामें पुरुषके चित्तमें स्थित बहुमान चांदीके समान है,
और संपूर्ण बाह्यक्रिया सिकेके समान है । बहुमान और बाह्यक्रिया इन दोनोंका योग मिल जावे तो खरे रुपयेकी भांति उ त्तम वन्दना जानो । मनमें बहुमान होने पर भी प्रमादसे बं. दना करनेवालेकी वन्दना दूसरी शाखामें कहे हुए रुपयेके समान है । किसी वस्तुके लाभार्थ संपूर्ण बाह्य क्रिया उत्तम होने पर भी वह वन्दना तीसरी शाखामें कहे हुए रुपये के समान है। मनमें बहुमान न हो और बाह्यक्रिया भी बराबर न होवेतो इस तत्वसे वन्दना नहीं ही के बराबर है। मनमें बहुमान रख