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सन्मुख बैठना, ८ बराबरीसे बैठना, ९ पीठके समीप बैठना, १० आहार आदि लेनके समय गुरुसे पहिले ही आचमन करना, ११ गमनागमनकी आलोचना ( इरियावहि ) गुरुसे पहिले करना, १२ रात्रिको " कौन सोया है ?" ऐसा कह कर गुरु बुलावे तब गुरुका वचन सुनकर भी निद्रादिकका बहाना कर प्रत्युत्तर न देना, १३ गुरुआदिके कोई पास आवे तो उसे प्रसन रखनेके हेतु गुरुसे पहिले आप ही बोले, १४ आहारआदि प्रथम अन्य साधुओंके पास आलोय कर पश्वात् गुरुके पास आलोवे, १५ आहारआदि प्रथम अन्य साधुओंको बताकर पश्चात् गुरुको बतावे, १६ आहारआदि करनेके समय प्रथम अन्य साधुओंको बुलाकर पश्चात् गुरुको बुलावे, १७ गुरुको पुछे बिना ही स्वेच्छासे स्निग्ध तथा मिष्ट अन्न दूसरे साधुओंको देना, १८ गुरुको जैसा वैसा देकर सरस व स्निग्ध आहार स्वयं वापरना । १९ गुरु बुलावे तब सुन कर भी अनसुनेकी भांति उत्तर न देना, २० गुरुके साथ कर्कश तथा उच्च स्वरसे बोलना, २१ गुरु बुलावे तब अपने आसन पर बैठे हुए ही उत्तर देना, २२ गुरु बुलावे तब " कहो क्या है ? कौन बुलाता है ? " ऐसे विनय रहित वचन बोलना २३ गुरु कोई काम करनेको कहे तब 'आप क्यों नहीं करते? ऐसा उत्तर देना । २४ गुरु कहे कि " तुम समर्थ हो, पर्यायसे (दीक्षासे ) छोटे हो, इसलिये वृद्ध-ग्लानादिकका वैयावृत्य