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थवा खोटा हिसाब लिखनेवाला श्रावक पापकर्मसे लिप्त हो जाता है ।
देवद्रव्यकी आवक में बाधा आवे ऐसा कोई भी काम करे, अथवा स्वयं देना स्वीकार किया हुआ देवद्रव्य न दे, तथा देवद्रव्य भक्षण करनेवालेकी उपेक्षा करे, तो भी वह संसार में भ्रमण करता है । केवलिभाषितधर्मकी वृद्धि करनेवाले व ज्ञानदर्शन के गुणकी प्रभावना करनेवाले ऐसे जो चैत्यद्रव्यका भक्षण करे, तो अनंतसंसारी होता है । देवद्रव्य होने ही से मंदिरकी सार सम्हाल तथा हमेशा पूजा, सत्कार होना संभव है । वहीं मुनिराजका भी योग मिल आता है। उनका व्याख्यान सुननेसे केवलिभाषितधर्म की वृद्धि और ज्ञान दर्शन के गुणोंकी प्रभावना होती है । केवलिभापितधर्मकी वृद्धि करनेवाले और ज्ञानदर्शन के गुणोंकी प्रभावना करनेवाले देवद्रव्यकी जो रक्षा करता हैं वह परिमित (अल्प ) संसारी होता है । केवलिभाषितधर्मकी वृद्धि करनेवाले और ज्ञान - दर्शनके गुणों की प्रभावना करनेवाले देवद्रव्यकी, पूर्वका हो उसकी रक्षा तथा नया संचित करके उसकी वृद्धि करे वह केवलिभाषितधर्मकी अतिशय भक्ति करने से तीर्थंकर पद पाता है । पन्द्रह कर्मादान तथा अन्य निंद्य व्यापार छोडकर उत्तम व्यवहारसे तथा न्यायमार्ग ही से देवद्रव्यकी वृद्धि करना चाहिये। कहा है कि — मोहवश कोई कोई अज्ञानी पुरुष जिनेश्वर भगवानकी आज्ञासे विपरीत