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(३०४) लेन देन के निमित्त धरना देना, वाद विवाद करना, रोना कूटना राजकथादि विकथा करना, जिनमंदिरमें अपने गाय, बैल आदि बांधना, विविध प्रकार के अन्न पकाना, इत्यादि घरके कार्य तथा किसीको अपशब्द बोलना आदि पांचवी अनुचितवृत्ति आशातना है । अत्यंत विषयासक्त व अविरति देवता भी जिनमंदिरमें आशातनाओंको सर्वथा त्याग देते हैं। कहा है कि
देवहरयमि देवा, विसयविसविमोहिआवि न कयावि । अच्छरसाहिपि समं, हासकीडाइ न कुणंति ॥ १ ॥
कामविषयरूप विषसे लिपटे हुए देवता भी जिनमंदिरमें अप्सराओंके साथ हास्य-क्रीडादि कभी भी नहीं करते ।
गुरुकी आशातनाएं तैंतीस हैं. यथाः
१ कारण बिना गुरुसे आगे चलना. मार्ग दिखाना आदि. कारणके बिना गुरुके आगे चलना अयोग्य है, कारण कि उससे अविनयरूप दोष होता है. इस लिये यह आशातना है । २ गुरुके दोनों बाजू बराबरीसे चलना । ( इससे भी अविनय होता है, इस लिये यह आशातना है । ) ३ गुरुकी पीठको लगते अथवा थोडे अन्तरसे चलना · ऐसा करनेसे खांसी अथवा छींक आने पर खंखार, मल निकले तो गुरुके वस्त्र आदिको लगना संभव है, इसलिये यह आशातना है । दूसरी आशातनाके भी यही दोष जानो । ) ४ गुरुके सन्मुख खडे रहना, ५ वरावरीमें खडे रहना, ६ पीठके समीप खडा रहना, ७ गुरुके मुख