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हुए दिव्य उत्सव में उन चारों कन्याओंका पाणिग्रहण किया. तदनन्तर विचित्रगति विद्याधर धर्मदत्त तथा अन्य सर्व राजाओंको लेकर वैताढ्यपर्वत पर गया. वहां विविधप्रकारके उत्सव करके उसने अपनी कन्या और राज्य धर्मदत्तको अर्पण किया तथा उसी समय उसकी दी हुई एक सहस्र विद्याएं धर्मदत्तको सिद्ध हुई. इस प्रकार विचित्रगीत आदि विद्याधरोंकी दी हुई पांचसौ कन्याओंका पाणिग्रहण करके धर्मदत्त अपने नगरको आया, और वहां भी अन्य राजाओंकी पांचसौ कन्याओंसे विवाह किया. पश्चात् राजधर राजाने भी अपनी समग्र राज्यसंपदा अपने सद्गुणी पुत्र धर्मदत्तको सौंप, चित्रगति सद्गुरू के पास अपनी पट्टरानी प्रीतिमती सहित दीक्षा ली. विचित्र गतिने
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भी धर्मदत्तको पूछकर दीक्षा ग्रहण की. समय पाकर चित्रगति विचित्र गति, राजधर राजा और प्रीतिमति रानी ये चारों अनुक्रमसे मोक्षको गये |
इधर धर्मदत्त ने हजारों राजाओं को जीत लिये, और वह दस हजार रथ, दस हजार हाथी, एकलक्ष घोडे और एक करोड पैदल सैन्यका अधिपति होगया. नाना प्रकारकी विद्याओंके मदको धारण करनेवाले सहस्रों विद्याधरोंके राजा धर्मदत्तकी सेवा में तत्पर होगये. इस तरह बहुत समय तक इन्द्रकी भांति उसने बहुतसा राज्य भोगा. उसने स्मरण करते ही आने वाले पूर्व प्रसन्न किये हुए देवकी सहायता से अपने देशको देवकुरु