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क्या कहूं ? पूर्वभवमें पुण्य उपार्जन नहीं किया, जिससे अपने ही पुत्रके द्वारा मेरे भाग्यमें पशुके समान मृत्यु और दुर्गति पानेका प्रसंग आया, तो अब भी मुझे चेत जाना चाहिये. ऐसा विचार कर मनके अध्यवसाय निर्मल होनेसे उसने उसी समय पंचमष्ठि लोच किया. देवताओंने आकर साधुका वेष दिया. तब बुद्धिमान चित्रगतिन पंच महाव्रत ग्रहण किये. पश्चात् विचित्रगतिने पश्चाताप करके चित्रगतिको खमाया व पुनः राज्यपर बैठने की बहुत प्रार्थना करी. चित्रगतिने चारित्र लेनेका सब कारण कह सुनाया, पश्चात् पवनकी भांति अप्रतिबंध बिहार किया. साधुकल्पके अनुसार बिहार करते तथा महान कठिन तपस्या करते मुनिराज चित्रगतिको अबधिज्ञान व उसीके साथ मानो स्पर्धा ही से मनःपर्यवज्ञान भी उत्पन्न हुआ. (चित्रगतिमुनि राजाको कहते हैं कि ) वही मैं ज्ञानसे लाभ हो ऐसा समझकर तुम्हारा मोह दूर करनेके लिये यहां आया हूं। अब शेष समग्र वर्णन कहता हूं. वसुमित्रका जीव देवलोकसे च्यवकर तू राजा हुआ, और सुमित्रका जीव तेरी प्रीतिमती नामक रानी हुआ. इस प्रकार तुम दोनोंकी प्रीति पूर्वभव ही से दृढ हुई है. अपना श्रेष्ठ श्रावकत्व बतानेके लिये सुमित्रने कभी कभी कपट किया इसस वह स्त्रीत्वको प्राप्त हुआ। बडे खदकी बात है कि चतुर मनुष्य भी अपने हिताहितको भूल जाता है । "मेरेसे पहिले मेरे छोटे भाईको पुत्र न होवे." ऐसा चिन्तवन