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पाया । प्रीतिमती इतना कह ही रही थी कि इतनेमें रोगी मनुष्यकी भांति वह बालक अकस्मात् आई हुई मूसे तत्काल बेहोश होगया और उसके साथ ही प्रीतिमती भी असह्यदुःखसे मूर्छित होगई । तुरन्त ही परिवार तथा समीपके लोगोंने ' दृष्टिदोष अथवा कोई देवताकी पीडा होगी' ऐसी कल्पना कर बडे खेदसे ऊंचे स्वरसे पुकार किया कि, “ हाय २!! माता व पुत्र इन दोनोंको एकदम यह क्या होगया ?" क्षणमात्रमें राजा, प्रधान आदि लोगोंने वहां आकर दोनों मातापुत्रको शीतल उपचार किये जिससे थोडी देर ही में बालक व उसके बाद उसकी माता भी सचेत हुई। पूर्वकर्मका योग बडा आश्चर्यकारी है । उसी समय सर्वत्र इस बातकी बधाई हुई, राजपुत्रको उत्सव सहित घर ले आये, उस दिन राजपुत्रकी तबियत ठीक रही, उसने बार बार दूध पान आदि किया, परंतु दूसरे दिन शरीरकी प्रकृति अच्छी होते अरुचिवाले मनुष्यकी भांति उसने दूध न पिया और चौबिहार पञ्चखान करनेवालेकी तरह औषध आदि भी नहीं लिया। जिससे राजा, रानी, मंत्री तथा नगरवासी आदि बडे दुःखित हुए; सब किंकर्तव्यविमूढ होगये । इतने में मानो उस बालकके पुण्य ही से आकर्षित हुए हो ऐसे एक मुनिराज मध्यान्हके समय आकाशमेंसे उतरे। प्रथम परमप्रीतिसे बालकने, पश्चात् राजाआदि लोगोंने मुनिराजको वन्दना करी । राजाने बालकके दूध आदि त्याग देने