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दूसरेने विधिमें कुछ कसर की जिससे चांदी हुई । इसलिये सर्व कार्यों में विधि भली भांति जानना चाहिये व अपनी सर्वशक्ति से उसे (विधि) को निबाहना चाहिये ।
पूजाआदि पुण्यक्रिया करने के अनंतर सर्वकाल विधिकी कोई आशातना हुई होवे, उसके लिये मिथ्यादुष्कृत देना । पूर्वाचार्य अंगपूजादि तीन पूजाओं का फल इस रीति से कहते हैंप्रथम अंगपूजा विकी शांति करनेवाली है, दूसरी अग्रपूजा अभ्युदय करनेवाली है और तीसरी भावपूजा निर्वाणकी साधक है । इस भांति तीनो पूजाएं नामके अनुसार फल देनेवाली हैं । यहां पूर्वोक्त अंगपूजा तथा अग्रपूजा और चैत्य कराना, उनमे जिनविंची स्थापना कराना, तीर्थ यात्रा करना इत्यादि सर्व द्रव्यस्त है । कहा है कि
जिणभवणबिंबठवणाजत्तापूआइ सुत्त ओ विहिणा | दव्वत्थओत्ति नेअं, भावत्ययकारणत्तेण ।। १ ।।
जिनमंदिरकी और जिनबिंबकी प्रतिष्ठा, यात्रा, पूजा आदि धर्मानुष्ठान सूत्रोंमे कही हुई विधिके अनुसार करना । ये सर्व यात्रा आदि द्रव्यस्तव हैं ऐसा जानना, कारण कि, ये भावस्तवके कारण हैं । यद्यपि संपूर्ण पूजा प्रतिदिन परिपूर्णतया नहीं की जा सकती, तथापि अक्षत दीप इत्यादि देकर नित्य पूजा करना । जलका एकबिंदु महासमुद्र में डालने से वह जैसे अक्षय हो जाता है, वैसे ही वीतरागमे पूजा अर्पण करें