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प्रतिमाओं तीर्थंकरका आकार है, जिससे 66 यह तीर्थंकर है " ऐसी बुद्धि उत्पन्न होती है। ऐसा न करते अपने कदाग्रहसे अरिहंतकी प्रतिमाकी भी अवज्ञा करते हैं तो बलात्कार दुरंत संसाररूप दंड भोगना पडता है, जो ऐसा करे तो अविधिसे करी हुई प्रतिमा की भी पूजन करनेका प्रसंग आता है, जिससे अविधिकृत प्रतिमा में अनुमति देनेसे भगवान्की आज्ञाभंग करनेका दोष आता है ऐसा कुतर्क नहीं करना, कारण कि सभी प्रतिमाको मानने का आगम में प्रमाण है । श्रीकल्प भाष्य में कहा है कि
निस्सकड़मनिस्सकडे, चेइए सवहिं थुई तिनि ।
वेलं च चेइआणि अ, नाउं इक्विकिआ वावि ॥ १ ॥
अर्थ :-- निश्राकृत अर्थात् गच्छप्रतिबद्ध और अनिश्राकृत अर्थात् गच्छप्रतिबन्ध रहित ऐसे चैत्य में सब जगह तीन स्तुति कहना | यदि सब जगह तीन स्तुति कहते समय जाता रहता होवे तो, अथवा वहां चैत्य बहुत हों तो समय और चैत्य इन दोनोंका विचार करके प्रत्येक चैत्यमें एक २ स्तुति भी कहना । चैत्यमें जो मकड़ी के जाले आदि हो जायँ तो उन्हें निकाMahta कहते हैं ।
सीलेह मंखफलए, इयरे चोइति तंतुमाईसु ।
अभिजोति सवित्तिसु, अच्छि फेडत (संता ॥ १ ॥
अर्थ :- साधु, मंदिरमें मकडीके जाले आदि होवें तो मंदिर की सम्हाल करनेवाले अन्य गृहस्थी लोगोंको प्रेरणा करे,