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होती है, क्रूर तथा स्थिर कार्यमें अग्नि वायु और आकाश इन तीन तत्वोंसे शुभफल होता है। आयुष्य, जय, लाभ धान्यकी उत्पत्ति, वृष्टि, पुत्र, संग्रामका प्रश्न, जाना, आना, इतने कार्यों में पृथ्वीतत्त्व और जलतत्त्व शुभ है, पर अग्नितत्व और वायुतत्व अशुभ हैं । पृथ्वीतत्व होवे तो कार्य सिद्धि धीरे २ और जलतत्व होवे तो शीघ्र होती है । पूजा, द्रव्योपार्जन, विवाह, किल्लादि अथवा नदीका उल्लंघन, जाना, आना जीवन, घर, क्षेत्र इत्यादिकका संग्रह, खरीदना, बेचना, वृष्टि, राजादिककी सेवा, कृषि, विष, जय, विद्या, पट्टाभिषेक इत्यादि शुभकार्यमें चन्द्रनाडी शुभ है। किसी कार्यका प्रश्न अथवा कार्यारम्भके समय वाम ( डावी ) नासिका वायुसे पूर्ण होवे तथा उसके अन्दर वायुका आवागमन ठीक तरहसे चलता हो तो निश्चय कार्यसिद्धी होती है । बन्धनमें पडे हुए, रोगी, अपने अधिकारसे भ्रष्ट ऐसे पुरुषोंका प्रश्न, संग्राम, शत्रुका मिलाप, आकस्मिक भय, स्नान, पान, भोजन, गई वस्तुकी शोध, पुत्रके निमित्त स्त्रीसंभोग, विवाद तथा कोई भी कर कर्म इतनी वस्तुओंमें सूर्यनाडी शुभ है। किसी जगह ऐसा है कि, विद्यारंभ, दीक्षा, शस्त्राभ्यास, विवाद, राजाका दर्शन, गीत आदि, मंत्र यंत्रादिकका साधन, इतने कार्यों में सूर्यनाडी शुभ है । दाहिनी अथवा डाबी जिस नासिकामें प्राणवायु एक सरीखा चलता होवे उस तरफका पैर आगे रखकर अपने घरमें