________________
( १८३ )
1
आदि वस्तु आती है तथा मूंगफली तथा सौंठ आदि खादिममें गुड इत्यादि वस्तु आती है । ये अंदर आने वाली कपूरादि वस्तुएं स्वयं क्षुधाका शमन नहीं कर सकतीं, तथापि क्षुधाका शमन करनेवाले आहारको मदद करती हैं, इसलिये इनको भी आहार ही में गिना है । इस चतुर्विध आहारको छोडकर शेष सब वस्तुएं अनाहार कहलाती हैं । अथवा क्षुधापीडित जीव जो कुछ पेटमें डालता है, वह सर्व आहार है । औषधिआदिका विकल्प है, याने औषधिमें कुछ तो आहार है और कुछ अनाहार है । उसमें मिश्री और गुड आदि औषधि आहारमें गिनी जाती हैं और सर्पके काटे हुए मनुष्यको माटी आदि औषधी दी जाती है वे अनाहार हैं । अथवा जो वस्तु क्षुधा से पीडित मनुष्यको खाने में स्वादु जान पडे वे सर्व आहार हैं । और " मैं यह वस्तु भक्षण करूं " ऐसी किसीको खानेकी इच्छा न हो, तथा जो जिव्हाको भी स्वाद में बुरी लगे, वे सर्व वस्तुएं अनाहार हैं । यथा: -- कायिकी, निम्ब आदि की छाल, पंचमूलादिक, आमला हरड़ा बहेडा इत्यादिक फल ये सब अनाहार हैं। निशीथ चूर्णिमें तो ऐसा कहा है कि:- नीम आदि वृक्षोंकी छाल, उनके निम्बोली आदि फल, उन्हींका मूल इत्यादि सर्व अनाहार हैं ।
पच्चकखान के स्थान.
अब पच्चक्खान के उच्चारण में पांच स्थान हैं, उनका बर्णन करते हैं । प्रथम स्थान में नवकारसी, पोरसी आदि तेरह