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पुरुषका संयोग, नगरकी खाल तथा सब अशुचि स्थान इनमें संमूच्छिम मनुष्य उत्पन्न होते हैं। अंगुलके असंख्यातवें भाग समान अवगाहना वाले, असंज्ञी, मिथ्यादृष्टि, अज्ञानी, सर्वपर्याप्ति के अपर्याप्त और अंतर्मुहूर्त आयुष्य वाले ऐसे वे संमूच्छिम मनुष्य (अंतर्मुहूर्त में ) काल करते हैं। ऊपर " सर्व अशुचि स्थान " कहा है याने जो कोई स्थान मनुष्य के संसर्गसे अशुचि होते हैं वे सर्व स्थान लेना, ऐसा पनत्रणाकी वृत्ति में
कहा है ।
दांतन की विधि.
दांतन आदि करना होवे तो दोष रहित ( अचित्त ) स्थान में ज्ञातवृक्ष के अचित्त और कोमल दंतकाष्ठसे अथवा दांतकी दृढ़ता करने वाली अंगूठेकी पासकी तर्जनी अंगुली से घिस कर करना । दांत तथा नाकका मल डाला हो, उसपर धूल ढांकना आदि यतना अवश्य रखना | व्यवहारशास्त्र में तो इस प्रकार कहा है कि :
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दांतकी दृढताके निमित्त प्रथम तर्जनी अंगुली से दांतकी दांदें घिसना पश्चात यत्नपूर्वक दातन करना । जो पानी के प्रथम - कुल्लेमें से एक बिन्दु कंठमें चला जावे तो समझना कि, आज भोजन अच्छा मिलेगा। सरल, गांठ विना, अच्छी कूची बनजावे ऐसा, पतली नोक वाला, दश अंगुल लम्बा, टशली कनिष्ठा अंगुली की नोकके बराबर जाडा, ऐसा ज्ञातवृक्ष के दांतनको कनिष्ठिका और