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द्रव्यका त्याग नहीं करनेसे ( २ ), एकशाट ( एकपनेका बिना जोड ) उत्तरासंग करनेसे ( ३ ), भगवानको देखते ही दोनों हाथ जोडनेसे ( ४ ), और मनकी एकाग्रता करनेसे (५) इत्यादि, राजाआदिने तो जिनमंदिरमें प्रवेश करे उसी समय राज चिन्ह त्याग देना चाहिये । कहा है किखड्ग, छत्र, जूता, मुकुट और चंवर ये श्रेष्ठ राजचिन्ह त्याग कर... इत्यादि।
मंदिरके प्रथमद्वारमें प्रवेश करते, मन, वचन, कायासे घर सम्बन्धी व्यापारका निषेध किया जाता है, ऐसा बताने के हेतु तीन बार निसीही करी जाती है, परन्तु वह निसीही एक ही गिनी जाती है, कारण कि, एक घर सम्बन्धी व्यापार ही का उसमें निषेध किया है । पश्चात् मूलनायकजीको वन्दना कर "कल्याणके इच्छुक लोगोंने सर्व उत्कृष्ट वस्तुएं प्रायः दाहिनी ओर ही रखना, " ऐसी नीति है, अतएव मूलनायकजीको अपनी दाहिनी ओर करता ज्ञान, दर्शन और चारित्र इन तीनोंकी आराधना करनेके हेतु तीन प्रदक्षिणा दे। उसके अनन्तर भक्तिसे परिपूर्ण मनसे " नमो जिणाणं " ऐसा प्रकट कहे और अर्धावनत ( जिसमें आधा शरीर नमता है ऐसा) अथवा पंचांग प्रणाम करे, पश्चात् पूजाके उपकरण हाथमें ले भगवानके गुणगणसे रचे हुए स्तवनोंको अपने परिवार के साथ मधुर व गंभीर-स्वरमे गाता हुआ, हाथमें योगमुद्रा धारण