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संकोचना) प्रसारित ( अंग प्रसारना), रेचक, आरचित, भ्रांत (बहकना ) संभ्रांत ( अत्यंत बहकना), यह उत्पातादिनृत्यनामक इकतीसवां भेद [ ३१ ] तीर्थकरादि महापुरुपोंके चरित्रका अभिनय करना यह बत्तीसवां भेद [३२]. इस प्रकार रायपसेणीसूत्र में बत्तीसबद्धनाटकके भेद कहे हैं। __ इस भांति राजा आदि ऋद्धिशाली श्रावक जिनमंदिरको जावे । परन्तु जो साधारण ऋद्धिवन्त हो, उसने तो लोकपरिहास टालनेके निमित्त अहंकारका त्याग कर अपने कुल तथा द्रव्यके उचित आडंबर रख, भाई, मित्र, पुत्रादिक परिवारको साथ लेकर जिनमंदिरको जाना | वहां जानेमें (१) फूल, तांबूल, सरशव, दूर्वा (दूध), तथा छरी, पादुका, मुकुट, वाहन प्रमुख सचित्त और अचित्तवस्तुका त्याग करे । यह प्रथम अभिगम है। (२) मुकुटको छोडकर शेष अलंकार आदि अचित्तद्रव्यका त्याग न करे यह दूसरा अभिगम है ( ३ । एक ( बिना जोडका ) तथा चौडे वस्त्रसे उत्तरासंग करे, यह तीसरा अभिगम है । (४) भगवानको देखने पर दोनो हाथ जोड " णमो जिणाणं " यह कहता हुआ वंदना करे, यह चौथा अभिगम है। (५) मनको एकाग्र करे, यह पांचवां अभिगम है । ऐसे पांच अभिगम पूर्ण करे तथा निसीही करके जिनमंदिरमें प्रवेश करे। इस विषय में पूर्वाचार्योंका वचन इस भांति है:- सचित्तद्रव्यका त्याग करनेसे (१), अचित