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(२२१) हाथमें सोनेके बिजोरे, नारियल, सुपारी, नागरवेलके पान, सुवर्णमुद्रा, अंगूठियां, मोदक आदि रखना, धूप उखेवना, सुगन्धित वासक्षेप करना इत्यादि सर्व उपचार अंगपूजामें होते हैं। बृहद्भाष्यमें कहा है कि
पहाणविलेवणआहरणवत्थफलगंधधूवपुप्फेहिं । कीरइ जिणंगपूआ, तत्थ विही एप नायवो ॥ १ ॥ वत्थेण बंधिऊणं, नासं अहवा जहासमाहीए । वज्जेअव्वं तु तया देहमिवि कंडुअणमाई ॥ २ ॥ स्नात्र, विलेपन, आभरण, वस्त्र, फल, सुगंधित चूर्ण (वासक्षेप), धूप तथा पुष्प इतने उपचारोंसे, जिनेश्वर भगवानकी अंगपूजा करी जाती है । उसकी विधि इस प्रकार है
वस्त्रसे नासिका बांध कर अथवा जिस प्रकार चित्तकी समाधि रहे वैसा करके पूजा करना । उस समय शरीरमें खुजाना आदि क्रिया अवश्य त्याग देना । अन्य स्थान पर भी कहा है कि- जगतबंधु श्रीजिनेश्वरभगवानकी पूजा करते समय शरीरमें खुजाना, खंखार डालना और स्तुति स्तोत्र बोलना ये तीन बातें वर्जित हैं। देवपूजाके समय मौन करना ही श्रेष्ठ मार्ग है, कदाचित् वैसा न किया जा सके तो सावधवचन तो सर्वथा छोडना । कारण कि निसीहि करनेमें गृहव्यापारका निषेध किया है। उसीके लिये हस्त, मुख, नेत्र प्रमुख अवयवसे पापहेतु संज्ञा भी न करना, करनेसे अनु